फ़ज़ा में उड़ते परिंदे की ख़ैर हो यारब
कि उस का तैर बड़ा है मगर कमान है तंग
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बे-ज़बाँ भी तो बता देता है मंज़िल का पता
डूबता हुआ सूरज दे गया सज़ा ऐसी
ज़मीन तंग है यारब कि आसमान है तंग
ग़म दिए हैं तो मसर्रत के गुहर भी देना
ये अर्ज़-ओ-समा क़ुलज़ुम-ओ-सहरा मुतहर्रिक
उर्दू
लफ़्ज़-ओ-मा'नी के समुंदर का सफ़र हैं कुछ लोग
जब तक तुझ को मौत न आए कर ले रैन-बसेरा बाबा
मुश्तइ'ल हो गया वो ग़ुंचा-दहन दानिस्ता