चाहत Poetry

राहत-ए-नज़र भी है वो अज़ाब-ए-जाँ भी है

महमूद शाम

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

मुझ को तेरी चाहत ज़िंदा रखती है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

दीपक-राग है चाहत अपनी काहे सुनाएँ तुम्हें

ज़ुहूर नज़र

हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे

ज़ुबैर रिज़वी

दर्द की शाख़ पे इक ताज़ा समर आ गया है

ज़िया ज़मीर

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

शजर जलते हैं शाख़ें जल रही हैं

ज़िया जालंधरी

जब उन्ही को न सुना पाए ग़म-ए-जाँ अपना

ज़िया जालंधरी

बदन के दोश पे साँसों का मक़बरा मैं हूँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

पटरियों की चमकती हुई धार पर फ़ासले अपनी गर्दन कटाते रहे

यूसुफ़ तक़ी

शांति

यूसुफ़ राहत

तेरी आँखों से मिली जुम्बिश मिरी तहरीर को

योगेन्द्र बहल तिश्ना

तर्क उल्फ़त में भी उस ने ये रिवायत रक्खी

यशब तमन्ना

कराँ-ता-कराँ

वज़ीर आग़ा

जा बैठते हो ग़ैरों में ग़ैरत नहीं आती

वाजिद अली शाह अख़्तर

आइने से बात करना इतना आसाँ भी नहीं

उषा भदोरिया

मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ

त्रिपुरारि

दर्द-ए-दिल को दास्ताँ-दर-दास्ताँ होने तो दो

तल्हा रिज़वी बारक़

जो मिल गया है यहाँ जल्वा-ए-ख़याली है

ताजदार आदिल

में न कहता था कि शहरों में न जा यार मिरे

ताहिर फ़राज़

कभी कभी तिरी चाहत पे ये गुमाँ गुज़रा

सय्यदा शान-ए-मेराज

है समाँ हर तरफ़ बदलने को

सय्यद सग़ीर सफ़ी

भूल मेरी क़ुबूल की उस ने

सय्यद सग़ीर सफ़ी

ग़म-हा-ए-रोज़गार से फ़ुर्सत नहीं मुझे

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

मेरी उम्र में बहुत से वक़्त नहीं आए

सय्यद काशिफ़ रज़ा

बाँहों में यार हो, कोई फ़ुर्सत की शाम हो

सय्यद काशिफ़ रज़ा

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