चाहत Poetry (page 4)

अपनी मिट्टी को सर-अफ़राज़ नहीं कर सकते

रईस फ़रोग़

सरसर चली वो गर्म कि साए भी जल गए

इक़बाल मिनहास

दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझे

इफ़्तिख़ार राग़िब

बर्क़ ने जब भी आँख खोली है

इब्न-ए-मुफ़्ती

ये सराए है

इब्न-ए-इंशा

दिल इक कुटिया दश्त किनारे

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

चाहत मिरी चाहत ही नहीं आप के नज़दीक

हसरत मोहानी

ठहरे पानी को वही रेत पुरानी दे दे

हसन रिज़वी

हवा के रुख़ पर चराग़-ए-उल्फ़त की लौ बढ़ा कर चला गया है

हसन रिज़वी

शाएरी पूरा मर्द और पूरी औरत माँगती है

हसन अब्बास रज़ा

जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है

हैदर क़ुरैशी

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

पिया ख़मोश है मेरा

ग़ौसिया ख़ान सबीन

उसे मालूम है मैं सर-फिरा हूँ

फ़ज़्ल ताबिश

सिकंदर हूँ तलाश-ए-आब-ए-हैवाँ रोज़ करता हूँ

फ़रीद परबती

किस तरह छोड़ दूँ ऐ यार मैं चाहत तेरी

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा

फ़ना बुलंदशहरी

तुम अपनी करनी कर गुज़रो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम जो तारीक राहों में मारे गए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ऐ मुबारज़-तलब

फ़हीम शनास काज़मी

फ़ासलों की बात

एजाज़ अहमद एजाज़

तुझे भी हुस्न-ए-मुत्लक़ का अभी दीदार हो जाए

अहया भोजपुरी

रिश्ते की सच्चाई

एहसान साक़िब

मैं ने जब से चाहत के जुगनुओं को पाला है

दिलदार हाश्मी

चाहत

दीप्ति मिश्रा

तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ

दाग़ देहलवी

मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं

दाग़ देहलवी

करूँ क्या सख़्त मुश्किल आ पड़ी है

बिल्क़ीस ख़ान

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