हश्र Poetry

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

निगाह-ए-शौक़ को रुख़ पर निसार होने दो

ज़हीर अहमद ताज

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

तुम ने पहलू में मिरे बैठ के आफ़त ढाई

ज़हीर देहलवी

उन को हाल-ए-दिल-ए-पुर-सोज़ सुना कर उट्ठे

ज़हीर देहलवी

दे हश्र के वादे पे उसे कौन भला क़र्ज़

ज़हीर देहलवी

ऐ मेहरबाँ है गर यही सूरत निबाह की

ज़हीर देहलवी

सानेहा रोज़ नया हो तो ग़ज़ल क्या कहिए

ज़फ़र रबाब

मैं ज़र्द आग न पानी के सर्द डर में रहा

ज़फ़र इक़बाल

कुछ भी न उस की ज़ीनत-ओ-ज़ेबाई से हुआ

ज़फ़र इक़बाल

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

सवाली

यूसुफ़ ज़फ़र

ज़िंदा रहने का वो अफ़्सून-ए-अजब याद नहीं

यज़दानी जालंधरी

भीगी पलकें शौक़ का आलम वक़्त का धारा क्या नहीं देखा

यावर अब्बास

इक दिल में था इक सामने दरिया उसे कहना

यासमीन हबीब

पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला

यगाना चंगेज़ी

उदासी छा गई चेहरे पे शम-ए-महफ़िल के

यगाना चंगेज़ी

ठोकरें खिलवाईं क्या-क्या पा-ए-बे-ज़ंजीर ने

यगाना चंगेज़ी

नफ़्स नमरूद है क्या होना है

वज़ीर अली सबा लखनवी

अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

जुर्म इतने कर चला हूँ हश्र तक लिक्खेंगे रोज़

वसीम ख़ैराबादी

क्या हुआ उस ने जो आशिक़ से जफ़ाकारी की

वसीम ख़ैराबादी

जाए आशिक़ की बला हश्र में क्या रक्खा है

वसीम ख़ैराबादी

वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह

वलीउल्लाह मुहिब

मेरी ख़बर न लेना ऐ यार है तअ'ज्जुब

वलीउल्लाह मुहिब

हर आन यास बढ़नी हर दम उमीद घटनी

वलीउल्लाह मुहिब

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