हश्र Poetry (page 2)

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

वली उज़लत

हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं

वली उज़लत

आज दिल बे-क़रार है मेरा

वली उज़लत

जिस दिलरुबा सूँ दिल कूँ मिरे इत्तिहाद है

वली मोहम्मद वली

जब तुझ अरक़ के वस्फ़ में जारी क़लम हुआ

वली मोहम्मद वली

याद में अपने यार-ए-जानी की

वाजिद अली शाह अख़्तर

आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर

विपुल कुमार

दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं

विपुल कुमार

उजड़ के घर से सर-ए-राह आ के बैठे हैं

वारिस किरमानी

दिल है बेताब नज़र खोई हुई लगती है

तिलक राज पारस

था पस-ए-मिज़्गान-तर इक हश्र बरपा और भी

तौसीफ़ तबस्सुम

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

जुनूँ ने ज़हर का पियाला पिया आहिस्ता आहिस्ता

तलअत इशारत

सितम-ज़रीफ़ी की सूरत निकल ही आती है

तफ़ज़ील अहमद

मिट गए हाए मकीं और मकान-ए-देहली

तफ़ज़्ज़ुल हुसैन ख़ान कौकब देहलवी

आग़ाज़-ए-गुल है शौक़ मगर तेज़ अभी से है

ताबिश देहलवी

हो रूह के तईं जिस्म से किस तरह मोहब्बत

ताबाँ अब्दुल हई

हर तरफ़ हश्र में झंकार है ज़ंजीरों की

तअशशुक़ लखनवी

अपनी फ़रहत के दिन ऐ यार चले आते हैं

तअशशुक़ लखनवी

क़ाज़ी के मुँह पे मारी है बोतल शराब की

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

दर्द थमता ही नहीं सीने में आराम के बा'द

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

इश्वा क्यूँ दिल-रुबा नहीं होता

सय्यद हामिद

नग़्मा ऐसा भी मिरे सीना-ए-सद-चाक में है

सय्यद आबिद अली आबिद

दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ

सय्यद आबिद अली आबिद

तुम्हें क्या?

सुलैमान अरीब

तिरा दिल तो नहीं दिल की लगी हूँ

सुलैमान अरीब

जज़्बों से फ़रोज़ाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार

सुहैल काकोरवी

शौक़-ए-बुतान-ए-अंजुमन-आरा लिए हुए

सुहा मुजद्ददी

बहते पानी की तरह मौज-ए-सदा की सूरत

सोज़ नजीबाबादी

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