हश्र Poetry (page 7)

इन्ही गलियों में इक ऐसी गली है

राज़ी अख्तर शौक़

मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है

रज़ा हमदानी

चढ़ते हुए दरिया की अलामत नज़र आए

रज़ा हमदानी

किस लिए सहरा के मुहताज-ए-तमाशा होजिए

रज़ा अज़ीमाबादी

उम्र-ए-अबद से ख़िज़्र को बे-ज़ार देख कर

रविश सिद्दीक़ी

सवाल-ए-इश्क़ पर ता-हश्र चुप रहना पड़ा मुझ को

रविश सिद्दीक़ी

हम मय-कशों के क़दमों पर अक्सर

रविश सिद्दीक़ी

तजज़िया

राशिद आज़र

ख़ुश्की पे रहूँगी कभी पानी में रहूँगी

राशिदा माहीन मलिक

न छोड़ा दिल-ए-ख़स्ता-जाँ चलते चलते

रशीद लखनवी

जो मुझे मर्ग़ूब हो वो सोगवारी चाहिए

रशीद लखनवी

है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा

रशीद लखनवी

आँसू की तरह पोंछ के फेंका गया हूँ मैं

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

वो ख़ुश किसी के साथ हैं ना-ख़ुश किसी के साथ

रसा रामपुरी

नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो

रसा रामपुरी

ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

क्या क्या सवाल मेरी नज़र पूछती रही

राजेन्द्र नाथ रहबर

नादान कह रहे हैं जिसे आफ़्ताब-ए-हश्र

रजब अली बेग सुरूर

क़ुरआँ किताब है रुख़-ए-जानाँ के सामने

रजब अली बेग सुरूर

हमें हमारी बीवियों से बचाओ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

वो बाम पे फिर जल्वा-नुमा मेरे लिए है

राज कुमार सूरी नदीम

तल्ख़ी-ए-ग़म का जो है मुकम्मल जवाब ला

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

क्यूँ न हम याद किसी को सहर-ओ-शाम करें

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

दब गईं मौजें यकायक जोश में आने के बा'द

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

चश्म-ए-ख़ाना मक़ाम-ए-दर्द का है

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

करें हिजरत तो ख़ाक-ए-शहर भी जुज़-दान में रख लें

इक़बाल कौसर

पाता हूँ इज़्तिराब रुख़-ए-पुर-हिजाब में

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

दुनिया से कौन जाता है अपनी ख़ुशी के साथ

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

काँटों में ही कुछ ज़र्फ़-ए-समाअत नज़र आए

इमदाद निज़ामी

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