हश्र Poetry (page 10)

तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है

फ़ारिग़ बुख़ारी

मैं ख़ुश हुआ कि बूद में रक्खा गया मुझे

फ़क़ीह हैदर

यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था

फ़ानी बदायुनी

वो जी गया जो इश्क़ में जी से गुज़र गया

फ़ानी बदायुनी

मुझ को मिरे नसीब ने रोज़-ए-अज़ल से क्या दिया

फ़ानी बदायुनी

मुझ पे रखते हैं हश्र में इल्ज़ाम

फ़ानी बदायुनी

मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा

फ़ानी बदायुनी

मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं

फ़ानी बदायुनी

मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही

फ़ानी बदायुनी

क्यूँ न नैरंग-ए-जुनूँ पर कोई क़ुर्बां हो जाए

फ़ानी बदायुनी

इश्क़ इश्क़ हो शायद हुस्न में फ़ना हो कर

फ़ानी बदायुनी

दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में किस का ज़ुहूर था

फ़ानी बदायुनी

दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख

फ़ानी बदायुनी

दिल और दिल में याद किसी ख़ुश-ख़िराम की

फ़ानी बदायुनी

अदा से आड़ में ख़ंजर के मुँह छुपाए हुए

फ़ानी बदायुनी

मुझ को दुनिया के हर इक ग़म से छुड़ा रक्खा है

फ़ना बुलंदशहरी

जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा

फ़ना बुलंदशहरी

हुस्न-ए-बुताँ का इश्क़ मेरी जान हो गया

फ़ना बुलंदशहरी

आँखों में नमी आई चेहरे पे मलाल आया

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ ज़ुल्म के मातो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तराना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बुनियाद कुछ तो हो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उस ने पूछा भी मगर हाल छुपाए गए हम

फ़हीम शनास काज़मी

कार-ए-ख़ैर इतना तो ऐ लग़्ज़िश-ए-पा हो जाता

एजाज़ वारसी

दिल बुझ गया तो गर्मी-ए-बाज़ार भी नहीं

एजाज़ वारसी

कुछ मिरे शौक़ ने दर-पर्दा कहा हो जैसे

एहतिशाम हुसैन

तुम अच्छे मसीहा हो दवा क्यूँ नहीं देते

एहसान जाफ़री

चाक पर मिट्टी को मर जाना है

दिनेश नायडू

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