हश्र Poetry (page 12)

ज़ाहिदों से न बनी हश्र के दिन भी या-रब

बेख़ुद देहलवी

तेशे से कोई काम न फ़रहाद से हुआ

बेख़ुद देहलवी

सब्र आता है जुदाई में न ख़्वाब आता है

बेख़ुद देहलवी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा

बेख़ुद देहलवी

दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया

बेख़ुद देहलवी

आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को

बेख़ुद देहलवी

ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ

बहज़ाद लखनवी

न तो अपने घर में क़रार है न तिरी गली में क़याम है

बेदम शाह वारसी

कभी यहाँ लिए हुए कभी वहाँ लिए हुए

बेदम शाह वारसी

बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना

बेदम शाह वारसी

तरहदार कहाँ से लाऊँ

बेबाक भोजपुरी

या रब न हिन्द ही में ये माटी ख़राब हो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या

बासित भोपाली

हर तरफ़ सोज़ का अंदाज़ जुदागाना है

बासित भोपाली

रह-रवाँ कहते हैं जिस को जरस-ए-महमिल है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे

बाक़र मेहदी

सर-ए-सौदा पे तिरे शेर-ए-रसा से 'आगाह'

बाक़र आगाह वेलोरी

शाहिद-ए-ग़ैब हुवैदा न हुआ था सो हुआ

बाक़र आगाह वेलोरी

दीदा-ए-तर

बलराज कोमल

गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है

ज़फ़र

तिरी तलाश में निकले हैं तेरे दीवाने

अज़ीज़ वारसी

उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में

अज़ीज़ तमन्नाई

रात की रात पड़ाव का मेला कोच की धूल सवेरे

अज़ीज़ क़ैसी

ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते

अज़ीज़ लखनवी

दिल आया इस तरह आख़िर फ़रे‌‌‌‌ब-ए-साज़-ओ-सामाँ में

अज़ीज़ लखनवी

वहशत-ए-दिल का अजब रंग नज़र आता है

अज़ीज़ हैदराबादी

तिफ़्ली के ख़्वाब

असरार-उल-हक़ मजाज़

सानेहा

असरार-उल-हक़ मजाज़

बोल! अरी ओ धरती बोल!

असरार-उल-हक़ मजाज़

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