हश्र Poetry (page 11)

शदीद गरमी के मौसम में मुशाइरा

दिलावर फ़िगार

हुस्न पर ए'तिबार हद कर दी

दिलावर फ़िगार

मायूस-ए-अज़ल हूँ ये माना नाकाम-ए-तमन्ना रहना है

दिल शाहजहाँपुरी

लुत्फ़ हो हश्र में कुछ बात बनाए न बने

दत्तात्रिया कैफ़ी

दौलत मिली जहान की नाम-ओ-निशाँ मिले

दर्शन सिंह

काश उस के रू-ब-रू न करें मुझ को हश्र में

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ'त को पा सके

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

कहानी एक रात की

दानिश फ़राज़ी

हश्र इक गुज़रा है वीराने पे घर होने तक

दानिश फ़राही

देखना हश्र में जब तुम पे मचल जाऊँगा

दाग़ देहलवी

तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ

दाग़ देहलवी

फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर

दाग़ देहलवी

कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए

दाग़ देहलवी

काबे की है हवस कभी कू-ए-बुताँ की है

दाग़ देहलवी

इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का

दाग़ देहलवी

ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम

दाग़ देहलवी

दिल परेशान हुआ जाता है

दाग़ देहलवी

भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले

दाग़ देहलवी

हम जो मिल बैठें तो यक-जान भी हो सकते हैं

चरख़ चिन्योटी

हम जो मिल बैठें तो यक जान भी हो सकते हैं

चरख़ चिन्योटी

क्या हुस्न है यूसुफ़ भी ख़रीदार है तेरा

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

अगर दुश्मन की थोड़ी सी मरम्मत और हो जाती

बूम मेरठी

हैराँ हूँ कि अब लाऊँ कहाँ से मैं ज़बाँ और

बिस्मिल साबरी

सारी उम्मीद रही जाती है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी

बिस्मिल अज़ीमाबादी

ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

ये कैसी आग अभी ऐ शम्अ तेरे दिल में बाक़ी है

बिस्मिल इलाहाबादी

दिल आतिश-ए-हिज्राँ से जलाना नहीं अच्छा

भारतेंदु हरिश्चंद्र

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