हैराँ हूँ हासिदों को पता कैसे चल गया
उन वलवलों का जो मेरे दिल में अभी न थे
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(459) Peoples Rate This
वैसे तो इक दूसरे की सब सुनते हैं
बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर
कम नहीं है ये अज़िय्यत कि अभी ज़िंदा हूँ
कभी कभी छलक उठता है आब ओ रंग उन का
भूल कर भी कोई लेता नहीं अब नाम-ए-वफ़ा
शहर को छोड़ के वीरानों में आबाद तो हो
कुछ तज़किरा-ए-हुस्न से रौशन थे दर-ओ-बाम
वीरान तो नहीं शब-ए-तारीक की फ़ज़ा
तुम्हारी आरज़ू में मैं ने अपनी आरज़ू की थी
न मिले वो तो तलाश उस की भी रहती है मुझे
जिस ने तिरी आँखों में शरारत नहीं देखी
ख़ुशा वो दर्द के लम्हे कि तेरे जाने पर