कम नहीं है ये अज़िय्यत कि अभी ज़िंदा हूँ
अब मिरे सर पे कोई और बला क्यूँ आए
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इस दौर-ए-बे-दिली में कोई बात कैसे हो
दूर से देख के मैं ने उसे पहचान लिया
शब की तन्हाइयों में याद उस की
अजनबी शहरों में तुझ को ढूँढता हूँ जिस तरह
सितारे इस क़दर देखे कि आँखें बुझ गईं अपनी
कोशिश है शर्त यूँही न हथियार फेंक दे
बिखरे हुए तारों से मिरी रात भरी है
भटकती हैं ज़माने में हवाएँ
ये समझ के माना है सच तुम्हारी बातों को
वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को
चराग़ ख़ुद ही बुझाया बुझा के छोड़ दिया
बुझ गई शम्अ कटी रात गई सब महफ़िल