बदनाम Poetry

पहले तो फ़क़त उस का तलबगार हुआ मैं

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया

नसीम शेख़

यहाँ-वहाँ से इधर-उधर से न जाने कैसे कहाँ से निकले

आफ़्ताब शकील

किस के नग़्मे गूँजते हैं ज़िंदगी के साज़ में

क़ुर्बतों के ये सिलसिले भी हैं

ज़िया शबनमी

अपनी तश्हीर करे या मुझे रुस्वा देखे

ज़िया शबनमी

ख़ुद को दुनिया में जो राज़ी-ब-रज़ा कहते हैं

ज़ेब उस्मानिया

जहान-ए-तंग में तन्हा हुआ मैं

ज़ाहिद फ़ारानी

ज़ुल्फ़-ए-ख़मदार में नूर-ए-रुख़-ए-ज़ेबा देखो

ज़ाहिद चौधरी

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

हर रोज़ ही इमरोज़ को फ़र्दा न करोगे

ज़हीर काश्मीरी

अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या

ज़हीर देहलवी

हर्फ़-ए-तदबीर न था हर्फ़-ए-दिलासा रौशन

ज़फ़र मुरादाबादी

न गुमाँ रहने दिया है न यक़ीं रहने दिया

ज़फ़र इक़बाल

ख़ुश बहुत फिरते हैं वो घर में तमाशा कर के

ज़फ़र इक़बाल

हालत-ए-बीमार-ए-ग़म पर जिस को हैरानी नहीं

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

आँखों में तिरे जल्वे लिए फिरते हैं हम लोग

यूसुफ़ ज़फ़र

पुकारता हूँ कि तुम हासिल-ए-तमन्ना हो

यूसुफ़ ज़फ़र

हम गरचे दिल ओ जान से बेज़ार हुए हैं

यूसुफ़ ज़फ़र

दामन-ए-क़ातिल जो उड़ उड़ कर हवा देने लगे

यगाना चंगेज़ी

बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया

वज़ीर आग़ा

खुलने ही लगे उन पर असरार-ए-शबाब आख़िर

वासिफ़ देहलवी

क्या हुआ उस ने जो आशिक़ से जफ़ाकारी की

वसीम ख़ैराबादी

मिल उस परी से क्या क्या हुआ दिल

वलीउल्लाह मुहिब

गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़

वली उज़लत

याद में अपने यार-ए-जानी की

वाजिद अली शाह अख़्तर

दोनों ने किया है मुझ को रुस्वा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

बढ़ चली है बहुत हया तेरी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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