बदनाम Poetry (page 5)

आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी

साग़र निज़ामी

धूप में ग़म की मिरे साथ जो आया होगा

साग़र आज़मी

सूने ही रहे हिज्र के सहरा उसे कहना

सफ़दर सलीम सियाल

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

सदा अम्बालवी

नहीं जाने है वो हर्फ़-ए-सताइश बरमला कहना

सबिहा सबा, न्यूयार्क

जवानी ज़िंदगानी है न तुम समझे न हम समझे

सबा अकबराबादी

तू न रुस्वा हो इस लिए हम ने

सादुल्लाह शाह

तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा

सादुल्लाह शाह

जोबन उन का उठान पर कुछ है

रियाज़ ख़ैराबादी

लोग उट्ठे हैं तिरी बज़्म से क्या क्या हो कर

रिफ़अत सेठी

यूँ खुले बंदों मोहब्बत का न चर्चा करना

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

यार को बेबाकी में अपना सा हम ने कर लिया

रज़ा अज़ीमाबादी

किस लिए सहरा के मुहताज-ए-तमाशा होजिए

रज़ा अज़ीमाबादी

रंग पर जब वो बज़्म-ए-नाज़ आई

रविश सिद्दीक़ी

पास-ए-वहशत है तो याद-ए-रुख़-ए-लैला भी न कर

रविश सिद्दीक़ी

ख़्वाब-ए-दीदार न देखा हम ने

रविश सिद्दीक़ी

कहीं फ़साना-ए-ग़म है कहीं ख़ुशी की पुकार

रविश सिद्दीक़ी

बहुत रुस्वा क्या इस आशिक़ी ने हर गली मुझ को

रऊफ़ यासीन जलाली

शेवा-ए-ज़ब्त को रुस्वा दिल-ए-नाशाद न कर

रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी

हवा के लम्स से भड़का भी हूँ मैं

राशिद मुफ़्ती

तुझ से वहशत में भी ग़ाफ़िल कब तिरा दीवाना था

रशीद रामपुरी

मिरा नाम क़ैस क्यूँ कर तिरे नाम तक न पहुँचे

रशीद रामपुरी

हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

दुनिया तेरे नाम से मुझ को पहचाने

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

ख़ुद्दारी-ए-हयात को रुस्वा नहीं किया

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

दीवाना कर के मुझ को तमाशा किया बहुत

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

शौक़ की हद को अभी पार किया जाना है

राजेश रेड्डी

मैं ख़ून बहा कर भी हुआ बाग़ में रुस्वा

इक़बाल साजिद

कल शब दिल-ए-आवारा को सीने से निकाला

इक़बाल साजिद

बे-ख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ

इक़बाल साजिद

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