दुनिया तेरे नाम से मुझ को पहचाने
इश्क़ में ऐसा रुस्वा कर दे या-अल्लाह
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(504) Peoples Rate This
न आए मेरे होंटों तक जो पैमाना नहीं आता
लम्हा लम्हा बिखर रहा हूँ मैं
हसीं तुझ से तिरा हुस्न-ए-तलब था
नामूस-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-इंसाँ में ढाल कर
ये ज़ख़्म ज़ख़्म बदन और नम फ़ज़ाओं में
जो भी देना है वो ख़ुदा देगा
ख़ुद्दारी-ए-हयात को रुस्वा नहीं किया
मैं कैसे तय करूँ बे-सम्त रास्तों का सफ़र
वक़्त-ए-रुख़्सत वो आँसू बहाने लगे
राज़-ए-हस्ती से आश्ना न हुआ
जो छू लूँ आसमाँ पाँव की धरती खींच लेता है
ज़रा देखें तो दुनिया कैसे कैसे रंग भरती है