दिल का सुकून रिज़्क़ के हंगामे खा गए
सुख आदमी का चंद निवालों ने डस लिया
Parveen Shakir
Rahat Indori
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Jaun Eliya
Anwar Masood
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Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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राज़-ए-हस्ती से आश्ना न हुआ
नवाज़ा है मुझे पत्थर से जिस ने
जो भी देना है वो ख़ुदा देगा
तेरा होना न मान कर गोया
क़फ़स पे बर्क़ गिरे और चमन को आग लगे
न आए मेरे होंटों तक जो पैमाना नहीं आता
ख़ुद्दारी-ए-हयात को रुस्वा नहीं किया
क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है
ये ज़ख़्म ज़ख़्म बदन और नम फ़ज़ाओं में
सीने में जब दर्द कोई बो जाता है
मैं कैसे तय करूँ बे-सम्त रास्तों का सफ़र
सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ