नवाज़ा है मुझे पत्थर से जिस ने
उसे मैं फूल दे कर देखता हूँ
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ये ज़ख़्म ज़ख़्म बदन और नम फ़ज़ाओं में
क़फ़स पे बर्क़ गिरे और चमन को आग लगे
दिल का सुकून रिज़्क़ के हंगामे खा गए
नामूस-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-इंसाँ में ढाल कर
बे-दीन हुए ईमान दिया हम इश्क़ में सब कुछ खो बैठे
जो छू लूँ आसमाँ पाँव की धरती खींच लेता है
क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है
राज़-ए-हस्ती से आश्ना न हुआ
लम्हा लम्हा बिखर रहा हूँ मैं
सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ
दुनिया तेरे नाम से मुझ को पहचाने