ज़ौक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ौक़

ज़ौक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ौक़
नामज़ौक़
अंग्रेज़ी नामSheikh Ibrahim Zauq
जन्म की तारीख1790
मौत की तिथि1854
जन्म स्थानDelhi

तू भला है तो बुरा हो नहीं सकता ऐ 'ज़ौक़'

नज़्र दें नफ़्स-कुश को दुनिया-दार

जिन को इस वक़्त में इस्लाम का दावा है कमाल

दुनिया से 'ज़ौक़' रिश्ता-ए-उल्फ़त को तोड़ दे

'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला

ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ

याँ लब पे लाख लाख सुख़न इज़्तिराब में

वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें

उठते उठते मैं ने इस हसरत से देखा है उन्हें

तुम जिसे याद करो फिर उसे क्या याद रहे

तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी

तू जान है हमारी और जान है तो सब कुछ

तवाज़ो का तरीक़ा साहिबो पूछो सुराही से

सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे

शुक्र पर्दे ही में उस बुत को हया ने रक्खा

सज्दे में उस ने हम को आँखें दिखा के मारा

सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है

रुलाएगी मिरी याद उन को मुद्दतों साहब

रहता सुख़न से नाम क़यामत तलक है 'ज़ौक़'

राहत के वास्ते है मुझे आरज़ू-ए-मर्ग

पीर-ए-मुग़ाँ के पास वो दारू है जिस से 'ज़ौक़'

पिला मय आश्कारा हम को किस की साक़िया चोरी

फूल तो दो दिन बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखला गए

फिर मुझे ले चला उधर देखो

निकालूँ किस तरह सीने से अपने तीर-ए-जानाँ को

नाज़ुक-कलामियाँ मिरी तोड़ें अदू का दिल

नाज़ है गुल को नज़ाकत पे चमन में ऐ 'ज़ौक़'

न हुआ पर न हुआ 'मीर' का अंदाज़ नसीब

मोअज़्ज़िन मर्हबा बर-वक़्त बोला

मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ'

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