सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है
कौन फिरता है ये मुर्दार लिए फिरती है
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जो कुछ कि है दुनिया में वो इंसाँ के लिए है
नीमचा यार ने जिस वक़्त बग़ल में मारा
ज़ख़्मी हूँ तिरे नावक-ए-दुज़-दीदा-नज़र से
एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में
क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत
गुल उस निगह के ज़ख़्म-रसीदों में मिल गया
हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से
बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए
कहाँ तलक कहूँ साक़ी कि ला शराब तो दे
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे