जिन्न Poetry

अब शहर में कहाँ रहे वो बा-वक़ार लोग

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है

शौक़ मुरादाबादी

क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए

एहतिशाम हुसैन

ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

रफ़्तार-ए-तेज़-तर का भरम टूटने लगे

शोएब निज़ाम

हद से बढ़ती हुई ता'ज़ीर में देखा जाए

नईम गिलानी

मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई

नईम गिलानी

सुब्ह का धोका हुआ है शाम पर

फ़ारूक़ इंजीनियर

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

तलाश-ए-नूर

दर्शन सिंह

ज़ाबता

हबीब जालिब

ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम

बहार बन के जब से वो मिरे जहाँ पे छाए हैं

किस तवक़्क़ो' पे शरीक-ए-ग़म-ए-याराँ होंगे

अँधेरों से उलझने की कोई तदबीर करना है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

तेरा अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा लगता है

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

नाकामी-ए-सद-हसरत-ए-पारीना से डर जाएँ

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

जितनी भी तेज़ हो सके रफ़्तार कर के देख

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

तन्हाई न पूछ अपनी कि साथ अहल-ए-जुनूँ के

ज़ुहूर नज़र

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते

ज़ुहूर नज़र

हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते

ज़ुहूर नज़र

दिन ऐसे यूँ तो आए ही कब थे जो रास थे

ज़ुहूर नज़र

बे-कराँ

ज़ुबैर रिज़वी

वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए

ज़ुबैर रिज़वी

मुझे तुम शोहरतों के दरमियाँ गुमनाम लिख देना

ज़ुबैर रिज़वी

कुछ दिनों इस शहर में हम लोग आवारा फिरें

ज़ुबैर रिज़वी

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