जिन्न Poetry (page 45)

ये भी नहीं बीमार न थे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक

आशुफ़्ता चंगेज़ी

मैं हूँ हैराँ ये सिलसिला क्या है

आस मोहम्मद मोहसिन

बोसीदा जिस्म-ओ-जाँ की क़बाएँ लिए हुए

आस मोहम्मद मोहसिन

समझ तो ये कि न समझे ख़ुद अपना रंग-ए-जुनूँ

आले रज़ा रज़ा

हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को

आले रज़ा रज़ा

तुम्हारी मस्लहत अच्छी कि अपना ये जुनूँ बेहतर

आल-ए-अहमद सूरूर

ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी

आल-ए-अहमद सूरूर

वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे

आल-ए-अहमद सूरूर

सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर

आल-ए-अहमद सूरूर

शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई

आल-ए-अहमद सूरूर

नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है

आल-ए-अहमद सूरूर

लो अँधेरों ने भी अंदाज़ उजालों के लिए

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है

आल-ए-अहमद सूरूर

हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है

आल-ए-अहमद सूरूर

फ़ुग़ान-ए-दर्द में भी दर्द की ख़लिश ही नहीं

आल-ए-अहमद सूरूर

एक दीवाने को इतना ही शरफ़ क्या कम है

आल-ए-अहमद सूरूर

तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ

आग़ा अकबराबादी

सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता

आग़ा अकबराबादी

नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ

आग़ा अकबराबादी

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का

आफ़ताबुद्दौला लखनवी क़लक़

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