तुम्हारी मस्लहत अच्छी कि अपना ये जुनूँ बेहतर
सँभल कर गिरने वालो हम तो गिर गिर कर सँभले हैं
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1529) Peoples Rate This
हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है
ये क्या ग़ज़ब है जो कल तक सितम-रसीदा थे
तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं
बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
ग़ैरत-ए-इश्क़ का ये एक सहारा न गया
जब कभी बात किसी की भी बुरी लगती है
जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा
आती है धार उन के करम से शुऊर में
जब्र-ए-हालात का तो नाम लिया है तुम ने
हस्ती के भयानक नज़्ज़ारे साथ अपने चले हैं दुनिया से
हम बर्क़-ओ-शरर को कभी ख़ातिर में न लाए
आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी