शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
नामशिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
अंग्रेज़ी नामShiv Ratan Lal Barq Punchhwi

वो निकले हैं सरापा बन-सँवर कर

सुकूँ-अफ़ज़ा बहुत है दर्द-ए-उल्फ़त

साथ तेरा रहा नहीं बाक़ी

पथराई आँखों में देखो क्या क्या रंग दिखाता आँसू

मोहब्बत को बहुत होती है ग़ैरत

कोई हम से ख़फ़ा सा लगता है

कहीं आँसुओं से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ

हिज्र में यूँ बहते हैं आँसू

इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन

चाहे दीवाना कहें या लोग सौदाई कहें

याद है अब तक मुझे अहद-ए-जवानी याद है

शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए

रही दिल की दिल में ज़बाँ तक न पहुँची

न रहबर ने न उस की रहबरी ने

ख़ून-ए-दिल होता रहा ख़ून-ए-जिगर होता रहा

जब तिरा आसरा नहीं मिलता

हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई

इक दामन में फूल भरे हैं इक दामन में आग ही आग

दिलों को तोड़ने वालो ख़ुदा का ख़ौफ़ करो

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