इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन
तंग आ गए हैं गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से हम
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साथ तेरा रहा नहीं बाक़ी
ख़ून-ए-दिल होता रहा ख़ून-ए-जिगर होता रहा
इक दामन में फूल भरे हैं इक दामन में आग ही आग
सुकूँ-अफ़ज़ा बहुत है दर्द-ए-उल्फ़त
कोई हम से ख़फ़ा सा लगता है
कहीं आँसुओं से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ
रही दिल की दिल में ज़बाँ तक न पहुँची
जब तिरा आसरा नहीं मिलता
याद है अब तक मुझे अहद-ए-जवानी याद है
दिलों को तोड़ने वालो ख़ुदा का ख़ौफ़ करो
पथराई आँखों में देखो क्या क्या रंग दिखाता आँसू
वो निकले हैं सरापा बन-सँवर कर