वो निकले हैं सरापा बन-सँवर कर
क़यामत आएगी ये आज तय है
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सुकूँ-अफ़ज़ा बहुत है दर्द-ए-उल्फ़त
साथ तेरा रहा नहीं बाक़ी
इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन
इक दामन में फूल भरे हैं इक दामन में आग ही आग
जब तिरा आसरा नहीं मिलता
न रहबर ने न उस की रहबरी ने
चाहे दीवाना कहें या लोग सौदाई कहें
दिलों को तोड़ने वालो ख़ुदा का ख़ौफ़ करो
कहीं आँसुओं से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ
शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए
पथराई आँखों में देखो क्या क्या रंग दिखाता आँसू