साथ तेरा रहा नहीं बाक़ी
वर्ना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी
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शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए
चाहे दीवाना कहें या लोग सौदाई कहें
मोहब्बत को बहुत होती है ग़ैरत
हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई
पथराई आँखों में देखो क्या क्या रंग दिखाता आँसू
कोई हम से ख़फ़ा सा लगता है
सुकूँ-अफ़ज़ा बहुत है दर्द-ए-उल्फ़त
हिज्र में यूँ बहते हैं आँसू
रही दिल की दिल में ज़बाँ तक न पहुँची
न रहबर ने न उस की रहबरी ने
इक दामन में फूल भरे हैं इक दामन में आग ही आग