मोहब्बत को बहुत होती है ग़ैरत
ख़ता उन की है मैं शर्मा रहा हूँ
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कहीं आँसुओं से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ
दिलों को तोड़ने वालो ख़ुदा का ख़ौफ़ करो
हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई
वो निकले हैं सरापा बन-सँवर कर
जब तिरा आसरा नहीं मिलता
साथ तेरा रहा नहीं बाक़ी
पथराई आँखों में देखो क्या क्या रंग दिखाता आँसू
इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन
ख़ून-ए-दिल होता रहा ख़ून-ए-जिगर होता रहा
हिज्र में यूँ बहते हैं आँसू
याद है अब तक मुझे अहद-ए-जवानी याद है