हातिम अली मेहर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हातिम अली मेहर

हातिम अली मेहर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हातिम अली मेहर
नामहातिम अली मेहर
अंग्रेज़ी नामHatim Ali Mehr

ज़बाँ से बात निकली और पराई हो गई सच है

याद रखने की ये बातें हैं बजा है सच है

याद में इक शोख़ पंजाबी के रोते हैं जो हम

वहदहू-ला-शरीक की है क़सम

तू ने वहदत को कर दिया कसरत

तिरी तलाश से बाक़ी कोई मकाँ न रहा

सारी इज़्ज़त नौकरी से इस ज़माने में है 'मेहर'

सबा जो बड़ी बाग़ वाली हुई है

रातों को बुत बग़ल में हैं क़ुरआँ तमाम दिन

रात दिन सज्दे किया करता है हूरों के लिए

न ज़क़न है वो न लब हैं न वो पिस्ताँ न वो क़द

न ले जा दैर से का'बा हमें ज़ाहिद कि हम वाँ भी

मार डाला तिरी आँखों ने हमें

मजमा' में रक़ीबों के खुला था तिरा जूड़ा

क्या बुतों में है ख़ुदा जाने ब-क़ौल-ए-उस्ताद

कू-ए-क़ातिल में बसेगी नई दुनिया इक और

कूचे में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे

किस पर नहीं रही है इनायत हुज़ूर की

किधर का चाँद हुआ 'मेहर' के जो घर आए

ख़ूब-रूई पे है क्या नाज़ बुतान-ए-लंदन

करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम

काफ़िर-ए-इश्क़ हूँ मुश्ताक़-ए-शहादत भी हूँ

जवाँ रखती है मय देखे अजब तासीर पानी में

जन्नत की ने'मतों का मज़ा वाइ'ज़ों को हो

हम 'मेहर' मोहब्बत से बहुत तंग हैं अब तो

हम भी बातें बनाया करते हैं

गुलज़ार में फिर कोई गुल-ए-ताज़ा खिला क्या

गुल बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

फ़स्ल-ए-गुल आई तो क्या बे-सर-ओ-सामाँ हैं हम

दोनों उसी के बंदे हैं यकता है वो करीम

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