याद रखने की ये बातें हैं बजा है सच है
आप भूले न हमें आप को हम भूल गए
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का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम
तू ने वहदत को कर दिया कसरत
काफ़िर-ए-इश्क़ हूँ मुश्ताक़-ए-शहादत भी हूँ
कोई ले कर ख़बर नहीं आता
न ज़क़न है वो न लब हैं न वो पिस्ताँ न वो क़द
गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था
बोसे लेते हैं चश्म-ए-जानाँ के
पोशाक-ए-सियह में रुख़-ए-जानाँ नज़र आया
पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा
बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा
बुतों का सामना है और मैं हूँ
किधर का चाँद हुआ 'मेहर' के जो घर आए