याद में इक शोख़ पंजाबी के रोते हैं जो हम
आज-कल पंजाब में बहता है दरिया एक और
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खुल गया उन की मसीहाई का आलम शब-ए-वस्ल
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
ऐन-ए-का'बा में है मस्तों की जगह
दोनों उसी के बंदे हैं यकता है वो करीम
ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है
बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा
दर-ब-दर मारा-फिरा मैं जुस्तुजू-ए-यार में
याद रखने की ये बातें हैं बजा है सच है
बोसे लेते हैं चश्म-ए-जानाँ के
छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम
गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था
कोई ले कर ख़बर नहीं आता