गंतव्य Poetry

आओ फिर से दिया जलाएँ

अटल बिहारी वाजपेयी

कुछ ऐसे वस्ल की रातें गुज़ारी है मैं ने

अमित सतपाल तनवर

कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता

अख़्तर हाशमी

सलाम लोगो

हबीब जालिब

दश्त-ए-उम्र

काशिफ़ रफ़ीक़

पत्थर के उस बुत की कहानी

अर्श सिद्दीक़ी

ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है

शौक़ मुरादाबादी

बन गई नाज़ मोहब्बत तलब-ए-नाज़ के बा'द

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू

हबीब जालिब

बेचैनी

दौर आफ़रीदी

गाँधी के बा'द

इज़हार मलीहाबादी

कल से आज तक

दौर आफ़रीदी

नज़्म

अख़्तर हुसैन जाफ़री

दिसम्बर की आवाज़

बलराज कोमल

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

मैं ज़ेर-ए-लब अपना शजरा-ए-नसब दोहरा रहा था

जवाज़ जाफ़री

जिस्म से आगे की मंज़िल

फ़ैसल हाश्मी

दिल-ए-बे-इख़्तियार की ख़ुश्बू

यक़ीनन रहबर-ए-मंज़िल कहीं पर रास्ता भूला

ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम

न मेरा नाम मेरा है

हर वो हंगामा ना-गहाँ गुज़रा

एक है फिर भी है ख़ुदा सब का

पेड़ों की घनी छाँव और चैत की हिद्दत थी

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

बड़ी मुश्किल कहानी थी मगर अंजाम सादा है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

काम हैं और ज़रूरी कई करने के लिए

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

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