गंतव्य Poetry (page 50)

ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते

अहमद फ़राज़

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो

अहमद फ़राज़

कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी

अहमद फ़राज़

करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे

अहमद फ़राज़

चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह

अहमद फ़राज़

ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे

अहमद फ़राज़

अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए

अहमद फ़राज़

शाख़-ए-अरमाँ की वही बे-सब्री आज भी है

अहमद अज़ीमाबादी

अगर कुछ ए'तिबार-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो

आग़ाज़ बरनी

तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

पुर-नूर जिस के हुस्न से मदफ़न था कौन था

आग़ा हज्जू शरफ़

जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था

आग़ा हज्जू शरफ़

हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

चलते हैं गुलशन-ए-फ़िरदौस में घर लेते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

नौजवानी में अजब दिल की लगी होती है

अफ़ज़ल पेशावरी

बाग़ क्या क्या शजर दिखाते हैं

अफ़ज़ाल नवेद

अपनी तन्हाइयों के ग़ार में हूँ

अफ़ज़ल इलाहाबादी

बस एक बात की उस को ख़बर ज़रूरी है

आफ़ताब हुसैन

जब सफ़र 'अफ़सर' कभी करते नहीं

अफ़सर मेरठी

जिन को हर हालत में ख़ुश और शादमाँ पाता हूँ मैं

अफ़सर मेरठी

सरिश्क-ए-ग़म की रवानी थमी है मुश्किल से

अफ़सर माहपुरी

बहार आएगी गुलशन में तो दार-ओ-गीर भी होगी

अफ़सर माहपुरी

अजीब चीज़ मोहब्बत की वारदात भी है

अफ़सर माहपुरी

यूँ ख़बर किसे थी मेरी तिरी मुख़बिरी से पहले

अफ़रोज़ आलम

नज़्म

आदिल मंसूरी

नज़्म

आदिल मंसूरी

तअल्लुक़ अपनी जगह तुझ से बरक़रार भी है

अदीम हाशमी

ऐसा भी नहीं उस से मिला दे कोई आ कर

अदीम हाशमी

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