गंतव्य Poetry (page 52)

करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

गरेबाँ चाक है हाथों में ज़ालिम तेरा दामाँ है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

था किसी गुम-कर्दा-ए-मंज़िल का नक़्श-ए-बे-सबात

अब्दुल रहमान बज़्मी

तुझ को अग़राज़-ए-जहाँ से मावरा समझा था मैं

अब्दुल रहमान बज़्मी

दामन की फ़िक्र है न गरेबाँ की फ़िक्र है

अब्दुल मतीन नियाज़

मैं पहुँचा अपनी मंज़िल तक मगर आहिस्ता आहिस्ता

अब्दुल मन्नान तरज़ी

तू जो आबाद है ऐ दोस्त मिरे दिल के क़रीब

अब्दुल मलिक सोज़

हम-नफ़सो उजड़ गईं मेहर-ओ-वफ़ा की बस्तियाँ

अब्दुल मजीद सालिक

कहाँ शिकवा ज़माने का पस-ए-दीवार करते हैं

अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद

सब को पहुँचा के उन की मंज़िल पर

अब्दुल हमीद अदम

अगरचे रोज़-ए-अज़ल भी यही अँधेरा था

अब्दुल हमीद अदम

ख़ामोश कली सारे गुलिस्ताँ की ज़बाँ है

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

आवाज़ के मोती

अब्दुल अहद साज़

मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो

अब्दुल अहद साज़

जीतने मारका-ए-दिल वो लगातार गया

अब्दुल अहद साज़

बे-मसरफ़ बे-हासिल दुख

अब्दुल अहद साज़

ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले

आज़िम कोहली

दूर है मंज़िल तो क्या रस्ता तो है

आज़िम कोहली

तुम्हें ज़ेबा नहीं हरगिज़ सिले की आरज़ू रखना

अातिश बहावलपुरी

लाख पर्दों में गो निहाँ हम थे

अातिश बहावलपुरी

इतना ही बहुत है कि ये बारूद है मुझ में

आतिफ़ कमाल राना

दी गई तरतीब-ए-बज़्म-ए-कुन-फ़काँ मेरे लिए

आसी रामनगरी

असीरान-ए-क़फ़स ऐसा तो हो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ अपना

आसी रामनगरी

हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की

आसी ग़ाज़ीपुरी

उस शोख़ से मिलते ही हुई अपनी नज़र तेज़

आसी फ़ाईकी

दूर तक फैला समुंदर मुझ पे साहिल हो गया

आशुफ़्ता चंगेज़ी

मैं डर रहा हूँ हर इक इम्तिहान से पहले

आनन्द सरूप अंजुम

हर दुआ होगी बे-असर न समझ

आनन्द सरूप अंजुम

सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर

आल-ए-अहमद सूरूर

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