सब को पहुँचा के उन की मंज़िल पर
आप रस्ते में रह गया हूँ मैं
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ख़ाली है अभी जाम मैं कुछ सोच रहा हूँ
मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया
मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत
तुझ को क्या दूसरों के ऐबों से
बाज़ औक़ात किसी और के मिलने से 'अदम'
ज़िंदगी ज़ोर है रवानी का
जिन को दौलत हक़ीर लगती है
ये कैसी सरगोशी-ए-अज़ल साज़-ए-दिल के पर्दे हिला रही है
लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उस ने
जी चाहता है आज 'अदम' उन को छेड़िए
ज़िंदगी इक फ़रेब-ए-पैहम है
इक हसीं आँख के इशारे पर