जी चाहता है आज 'अदम' उन को छेड़िए
डर डर के प्यार करने में कोई मज़ा नहीं
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तड़प कर मैं ने तौबा तोड़ डाली
लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उस ने
सब को पहुँचा के उन की मंज़िल पर
साक़ी तुझे इक थोड़ी सी तकलीफ़ तो होगी
ख़ैरात सिर्फ़ इतनी मिली है हयात से
उरूस-ए-सुब्ह ने ली है मचल के अंगड़ाई
मुश्किल ये आ पड़ी है कि गर्दिश में जाम है
साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद
हाथ से खो न बैठना उस को
बे-जुम्बिश-ए-अब्रू तो नहीं काम चलेगा
क्या बात है ऐ जान-ए-सुख़न बात किए जा
न ख़ुदा है न नाख़ुदा साथी