उरूस-ए-सुब्ह ने ली है मचल के अंगड़ाई
सबा की नरमी-ए-रफ़्तार है सुरूर-अंगेज़
ये वक़्त है कि इबादत का एहतिमाम करें
ख़ुलूस-ए-दिल से उछाल एक साग़र-ए-लबरेज़
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तड़प कर मैं ने तौबा तोड़ डाली
कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ
मुझ से चुनाँ-चुनीं न करो मैं नशे मैं हूँ
हाथ से खो न बैठना उस को
ज़िंदगी की दराज़ पलकों पर
कितनी बे-साख़्ता ख़ता हूँ मैं
मैं उम्र भर जवाब नहीं दे सका 'अदम'
दिल को दिल से काम रहेगा
और तो दिल को नहीं है कोई तकलीफ़ 'अदम'
मुफ़लिसों को अमीर कहते हैं
शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
जिन को दौलत हक़ीर लगती है