और तो दिल को नहीं है कोई तकलीफ़ 'अदम'
हाँ ज़रा नब्ज़ किसी वक़्त ठहर जाती है
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गोरियों कालियों ने मार दिया
जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर
लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उस ने
किसी हसीं से लिपटना अशद ज़रूरी है
सूरत के आइने में दिल-ए-पाएमाल देख
तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया
रक़्स करता हूँ जाम पीता हूँ
हर परी-वश को ख़ुदा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
हवा सनके ख़ारों की बड़ी तकलीफ़ होती है
गुलों को खिल के मुरझाना पड़ा है
बढ़ के तूफ़ान को आग़ोश में ले ले अपनी
हँस हँस के जाम जाम को छलका के पी गया