सूरत के आइने में दिल-ए-पाएमाल देख
उल्फ़त की वारदात का हुस्न-ए-मिसाल देख
जब उस का नाम आए किसी की ज़बान पर
उस वक़्त ग़ौर से मिरे चेहरे का हाल देख
Mohsin Naqvi
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सो के जब वो निगार उठता है
गोरियों कालियों ने मार दिया
हाथ से खो न बैठना उस को
मुफ़लिसों को अमीर कहते हैं
ज़िंदगी इक फ़रेब-ए-पैहम है
जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर
अरे मय-गुसारो सवेरे सवेरे
नौजवानी में पारसा होना
ख़ुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया
'अदम' रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं
भूली-बिसरी बातों से क्या तश्कील-ए-रूदाद करें
हसीन नग़्मा-सराओ! बहार के दिन हैं