हाथ से खो न बैठना उस को
इतनी ख़ुद्दारियाँ नहीं अच्छी
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1194) Peoples Rate This
कुछ कुछ मिरी आँखों का तसर्रुफ़ भी है शामिल
काफ़ी वसीअ सिलसिला-ए-इख़्तियार है
ज़िंदगी ज़ोर है रवानी का
वो जो तेरे फ़क़ीर होते हैं
मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत
चलते चलते तमाम रस्तों से
आगही में इक ख़ला मौजूद है
सो रही है गुलों के बिस्तर पर
जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
मशहूर इक सवाल किया था करीम ने
ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता
हम से चुनाँ-चुनीं न करो हम नशे में हैं