ज़िंदगी ज़ोर है रवानी का
क्या थमेगा बहाव पानी का
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ऐ मिरा जाम तोड़ने वाले
आगही में इक ख़ला मौजूद है
मुद्दआ दूर तक गया लेकिन
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
मिरे दिल की उदास वादी में
हुजूम-ए-हश्र में खोलूँगा अद्ल का दफ़्तर
और अरमान इक निकल जाता
और तो दिल को नहीं है कोई तकलीफ़ 'अदम'
पहले बड़ी रग़बत थी तिरे नाम से मुझ को
उन को अहद-ए-शबाब में देखा
सवाल कर के मैं ख़ुद ही बहुत पशेमाँ हूँ
मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया