ज़िंदगी है इक किराए की ख़ुशी
सूखते तालाब का पानी हूँ मैं
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ख़राबात-ए-मंज़िल गह-ए-कहकशाँ है
बहुत से लोगों को ग़म ने जिला के मार दिया
साक़ी तुझे इक थोड़ी सी तकलीफ़ तो होगी
इतना तो दोस्ती का सिला दीजिए मुझे
अफ़्साना चाहते थे वो अफ़्साना बन गया
न ख़ुदा है न नाख़ुदा साथी
सो भी जा ऐ दिल-ए-मजरूह बहुत रात गई
मुद्दआ दूर तक गया लेकिन
साक़ी शराब ला कि तबीअ'त उदास है
कितनी सदियों से अज़्मत-ए-आदम
माह-ओ-अंजुम के सर्द होंटों पर
हश्र तक भी अगर सदाएँ दें