ख़राबात-ए-मंज़िल गह-ए-कहकशाँ है
वगर्ना हर इक चीज़ ज़ुल्मत-निशाँ है
लब-ए-माह-ओ-अंजुम पे साक़ी अज़ल से
तिरा ज़िक्र है या मिरी दास्ताँ है
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मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत
आगही में इक ख़ला मौजूद है
सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में
मुंक़लिब सूरत-ए-हालात भी हो जाती है
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप
ये क्या कि तुम ने जफ़ा से भी हाथ खींच लिया
तौबा का तकल्लुफ़ कौन करे हालात की निय्यत ठीक नहीं
लहरा के झूम झूम के ला मुस्कुरा के ला
पहले बड़ी रग़बत थी तिरे नाम से मुझ को
हँस के बोला करो बुलाया करो
कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ