संबंध Poetry

मिरी याद तुम को भी आती तो होगी

क़लील झांसवी

फूलों से सजा इक सेज दिखा

असरा रिज़वी

कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता

अख़्तर हाशमी

मुद्दतों बा'द वो गलियाँ वो झरोके देखे

महमूद शाम

तुम सर्वत को पढ़ती हो

अली ज़रयून

रिश्ता

गोबिंद प्रसाद

नए आदमी का कंफ़ेशन

ग़ज़नफ़र

कोई टूटा हुआ रिश्ता न दामन से उलझ जाए

ज़ुबैर रिज़वी

शाम होने वाली थी जब वो मुझ से बिछड़ा था ज़िंदगी की राहों में

ज़ुबैर रिज़वी

हम दोनों में कोई न अपने क़ौल-ओ-क़सम का सच्चा था

ज़ुबैर रिज़वी

ग़ुरूब-ए-शाम ही से ख़ुद को यूँ महसूस करता हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

अब्र से और धूप से रिश्ता है एक सा मिरा

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

कितने ही फ़ैसले किए पर कहाँ रुक सका हूँ मैं

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

मौज-ए-रेग सराब-सहरा कैसे बनती है

ज़ेब ग़ौरी

एहसास का क़िस्सा है सुनाना तो पड़ेगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

वही लड़की वही लड़का पुराना

ज़ाहिद फ़ारानी

कुछ यक़ीं रहने दिया कुछ वाहिमा रहने दिया

ज़ाहिद अाफ़ाक

ज़ख़्म-ए-ताज़ा बर्ग-ए-गुल में मुंतक़िल होते गए

ज़हीर सिद्दीक़ी

ज़हर-ए-साअत ही पिएँ जिस्म तह-ए-ख़ाक तो हो

ज़फ़र सिद्दीक़ी

आइना देखें न हम अक्स ही अपना देखें

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

आग का रिश्ता निकल आए कोई पानी के साथ

ज़फ़र इक़बाल

मैं ज़िंदगी का नक़्शा तरतीब दे रहा हूँ

ज़फ़र हमीदी

धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ

ज़फ़र गोरखपुरी

उस से मेरा तो कोई दूर का रिश्ता भी नहीं

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

हालत-ए-बीमार-ए-ग़म पर जिस को हैरानी नहीं

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

इतना करम कि अज़्म रहे हौसला रहे

यूसुफ़ तक़ी

वह जानते ही नहीं

वसीम बरेलवी

उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया

वसीम बरेलवी

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