खू-ए-लैल-ओ-नहार देखी है
तल्ख़ियों की बहार देखी है
ज़िंदगी के ज़रा से साग़र में
गर्दिश-ए-रोज़गार देखी है
Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(941) Peoples Rate This
नाख़ुदा किस लिए परेशाँ है
हल्का हल्का सुरूर है साक़ी
साहिल पे इक थके हुए जोगी की बंसरी
ज़बाँ पर आप का नाम आ रहा था
शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
मशहूर इक सवाल किया था करीम ने
मय-ख़ाना-ए-हस्ती में अक्सर हम अपना ठिकाना भूल गए
जी चाहता है आज 'अदम' उन को छेड़िए
बस इस क़दर है ख़ुलासा मिरी कहानी का
वो जो तेरे फ़क़ीर होते हैं
खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई
तुझ को क्या दूसरों के ऐबों से