नाख़ुदा किस लिए परेशाँ है
कश्मकश ऐन कामयाबी है
गर किनारा नहीं मुक़द्दर में
क़स्र-ए-दरिया में क्या ख़राबी है
Javed Akhtar
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ज़िंदगी है इक किराए की ख़ुशी
काफ़ी वसीअ सिलसिला-ए-इख़्तियार है
आँखों से पिलाते रहो साग़र में न डालो
दिल को दिल से काम रहेगा
मरमरीं मरक़दों पे वक़्त-ए-सहर
दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा
शौक़िया कोई नहीं होता ग़लत
ये क्या कि तुम ने जफ़ा से भी हाथ खींच लिया
तड़प कर मैं ने तौबा तोड़ डाली
कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ
ये रोज़-मर्रा के कुछ वाक़िआत-ए-शादी-ओ-ग़म
बारिश शराब-ए-अर्श है ये सोच कर 'अदम'