आँखों से पिलाते रहो साग़र में न डालो
अब हम से कोई जाम उठाया नहीं जाता
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दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा
मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया
कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ
एक रेज़ा तिरे तबस्सुम का
मुस्कुरा कर ख़िताब करते हो
जी चाहता है आज 'अदम' उन को छेड़िए
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
जा रहा था हरम को मैं लेकिन
शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
मैं उम्र भर जवाब नहीं दे सका 'अदम'
किसी जानिब से कोई मह-जबीं आने ही वाला है
सूरत के आइने में दिल-ए-पाएमाल देख