शर्मिंदा Poetry

बेचैनी के लम्हे साँसें पत्थर की

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

अब ये आँखें किसी तस्कीन से ताबिंदा नहीं

ज़िया जालंधरी

क़िस्सा गुल-बादशाह का

ज़ेहरा निगाह

हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

आईने मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गए

ज़हीर रहमती

अजब कोई ज़ोर-ए-बयाँ हो गया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद

ज़फ़र गोरखपुरी

मफ़रूर कभी ख़ुद पर शर्मिंदा नज़र आए

वसीम मलिक

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं

वाली आसी

ख़ुद के एहसास-ए-मोहब्बत ने मुझे ज़िंदा रखा

उर्मिलामाधव

बे-रहम शायरों के जुर्म

तनवीर अंजुम

सितम-ज़रीफ़ी की सूरत निकल ही आती है

तफ़ज़ील अहमद

बढ़ा तन्हाई में एहसास-ए-ग़म आहिस्ता आहिस्ता

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

हाल में अपने मगन हो फ़िक्र-ए-आइंदा न हो

सुरूर बाराबंकवी

अश्क आँखों में छुपा लेता हूँ मैं

सुरेन्द्र शजर

तेरी याद में रोते रोते तुझ जैसा हो जाएगा

सुलतान सुबहानी

रक़्स करता है ब-अंदाज़-ए-जुनूँ दौड़ता है

सुल्तान अख़्तर

छीन ले क़ुव्वत बीनाई ख़ुदाया मुझ से

सुल्तान अख़्तर

फ़ितरत-ए-इश्क़ गुनहगार हुई जाती है

सिराज लखनवी

तुम्हारे ख़्वाब लौटाने पे शर्मिंदा तो हैं लेकिन

शोएब निज़ाम

मियाँ बाज़ार को शर्मिंदा करना क्या ज़रूरी है

शोएब निज़ाम

किसी नादीदा शय की चाह में अक्सर बदलते हैं

शोएब निज़ाम

बस अपनी ख़ाक पर अब ख़ुद ही सुल्तानी करेंगे हम

शोएब निज़ाम

हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है

शेर सिंह नाज़ देहलवी

हम-ज़ाद

शाज़ तमकनत

हसरत-ए-ज़ोहरा-वशाँ सर्व-क़दाँ है कि जो थी

शौक़ माहरी

कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं

शारिक़ कैफ़ी

बुझे बुझे से शरारे मुझे क़ुबूल नहीं

शकेब जलाली

तू देख उसे सब जा आँखों के उठा पर्दे

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जिस को देखा सो यहाँ दुश्मन-ए-जाँ है अपना

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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