शर्मिंदा Poetry (page 2)

बहुत शर्मिंदा हूँ इबलीस से मैं

शहज़ाद अहमद

उठीं आँखें अगर आहट सुनी है

शहज़ाद अहमद

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने

शहरयार

मिरे ख़ुदा किसी सूरत उसे मिला मुझ से

शाहिद ज़की

सामने इक बे-रहम हक़ीक़त नंगी हो कर नाचती है

शबनम शकील

हाथ न आई दुनिया भी और इश्क़ में भी गुमनाम रहे

शबनम शकील

मुंतशिर जब ज़ेहन में लफ़्ज़ों का शीराज़ा हुआ

सीन शीन आलम

यकसूई

साहिर लुधियानवी

फ़रार

साहिर लुधियानवी

तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ

साग़र आज़मी

हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम

रज़ा अज़ीमाबादी

दरवाज़े के अंदर इक दरवाज़ा और

राजेश रेड्डी

न शिकवे हैं न फ़रियादें न आहें हैं न नाले हैं

राही शहाबी

हर दौर में हर अहद में ताबिंदा रहेंगे

राही शहाबी

हर दौर में हर अहद में ताबिंदा रहेंगे

राही शहाबी

रस्म-ए-उल्फ़त से है मक़्सूद-ए-वफ़ा हो कि न हो

इरफ़ान अहमद मीर

तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक शायर एक नज़्म

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शाएरी पूरा मर्द और पूरी औरत माँगती है

हसन अब्बास रज़ा

सारे चेहरे ताँबे के हैं लेकिन सब पर क़लई है

हकीम मंज़ूर

दिल शहीद-ए-रह-ए-दामान न हुआ था सो हुआ

हैदर अली आतिश

तमाम उम्र किया हम ने इंतिज़ार-ए-बहार

हफ़ीज़ होशियारपुरी

निज़ाम-ए-तबीअत से घबरा गया दिल

हादी मछलीशहरी

आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

माज़ी! तुझ से ''हाल'' मिरा शर्मिंदा है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

दस्त-ए-राहत ने कभी रँज-ए-गिराँ-बारी ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं

ग़ालिब

सबब थी फ़ितरत-ए-इंसाँ ख़राब मौसम का

फ़रियाद आज़र

खुल कर आख़िर जहल का एलान होना चाहिए

फरीहा नक़वी

कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है

फ़रहत एहसास

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