आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों
जिन पे गुज़री थी वही भूल गए
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हाए बे-दाद-ए-मोहब्बत कि ये ईं बर्बादी
न बेताबी न आशुफ़्ता-सरी है
न हो कुछ और तो वो दिल अता हो
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी
मेरे लिए जीने का सहारा है अभी तक
वो भला कैसे बताए कि ग़म-ए-हिज्र है क्या
आफ़ियत की उम्मीद क्या कि अभी
इज़हार-ए-ग़म किया था ब-उम्मीद-ए-इल्तिफ़ात
वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं
जब कोई फ़ित्ना-ए-अय्याम नहीं होता है