आंखें Poetry

सुनो ना जानाँ

असरा रिज़वी

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

कहाँ तहरीरें मैं ने बाँट दी हैं

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

देखते ही धड़कनें सारी परेशाँ हो गईं

एहतिमाम सादिक़

मैं ने बाग़ की जानिब पीठ कर ली

जवाज़ जाफ़री

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

रिवायती मोहब्बत

ममता तिवारी

'मजाज़' की मौत पर

द्वारका दास शोला

मैं बच गई माँ

ज़ेहरा निगाह

इक उम्र से जिस को लिए फिरता हूँ नज़र में

अहमद फ़ाख़िर

दिल में वीरानियाँ सिसकती हैं

अनवर ख़लील

रो पड़ा ना-गहाँ मुस्कुराने के बा'द

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

सितम कब उन पे ढाया है किसी ने

जावेद सिद्दीक़ी आज़मी

सारी रात के बिखरे हुए शीराज़े पर रक्खी हैं

अज़्म शाकरी

कोई नहीं था हुनर-आश्ना तुम्हारे बा'द

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे

संजय मिश्रा शौक़

हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है

महमूद शाम

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

फ़रेब-ए-ख़ूबी-ए-नैरंग देखने के लिए

संजय मिश्रा शौक़

मेरी दोस्त

हरबंस मुखिया

किस तरह रात की दहलीज़ कोई पार करे

फ़ैसल हाश्मी

नए आदमी का कंफ़ेशन

ग़ज़नफ़र

आख़िरी आदमी

फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी

शनावर

इमरान शनावर

मैं ज़ेर-ए-लब अपना शजरा-ए-नसब दोहरा रहा था

जवाज़ जाफ़री

छोटे क़द के लोग

एहतिशाम अख्तर

ख़्वाब

कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

बेचैनी के लम्हे साँसें पत्थर की

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

आता है नज़र अंजाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

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