आंखें Poetry (page 48)

चुप

अब्दुर्रशीद

उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा

अब्दुल्लाह कमाल

नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

हल्का हल्का सुरूर है साक़ी

अब्दुल हमीद अदम

कभी देखो तो मौजों का तड़पना कैसा लगता है

अब्दुल हमीद

होंकते दश्त में इक ग़म का समुंदर देखो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

नानी-अमाँ की वफ़ात पर एक नज़्म

अब्दुल अहद साज़

दिल-दही

अब्दुल अहद साज़

अँदेशा-ए-विसाल की एक नज़्म

अब्बास ताबिश

शे'र लिखने का फ़ाएदा क्या है

अब्बास ताबिश

सदा-ए-ज़ात के ऊँचे हिसार में गुम है

अब्बास ताबिश

मकाँ-भर हम को वीरानी बहुत है

अब्बास ताबिश

दी है वहशत तो ये वहशत ही मुसलसल हो जाए

अब्बास ताबिश

तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं

अब्बास रिज़वी

सितारे चाहते हैं माहताब माँगते हैं

अब्बास रिज़वी

जब कोई तीर हवादिस की कमाँ से आया

अब्बास रिज़वी

नाम ख़ुश्बू था सरापा भी ग़ज़ल जैसा था

अब्बास दाना

आप की हस्ती में ही मस्तूर हो जाता हूँ मैं

अातिश बहावलपुरी

मेरी आँखें और दीदार आप का

आसी ग़ाज़ीपुरी

फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले

आसी ग़ाज़ीपुरी

सवाल करती कई आँखें मुंतज़िर हैं यहाँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

सड़क पे चलते हुए आँखें बंद रखता हूँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

धुआँ उठ रहा है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दयार-ए-ख़्वाब

आशुफ़्ता चंगेज़ी

सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ख़बर तो दूर अमीन-ए-ख़बर नहीं आए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बादबाँ खोलेगी और बंद-ए-क़बा ले जाएगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है

आनिस मुईन

तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं

आलोक श्रीवास्तव

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